2-201 दशरथ रामेश्वर ( गुड़द नेर्लीकर के पास ) हासन कर्नाटक
रामेश्वर से लंका जाते समय श्रीराम आये थे। यहाँ उन्होंने दशरथजी का श्राद्ध किया था।
Read moreरामेश्वर से लंका जाते समय श्रीराम आये थे। यहाँ उन्होंने दशरथजी का श्राद्ध किया था।
Read moreएक लोक कथा के अनुसार स्थानीय प्रभाव से यहाँ लक्ष्मणजी का मन राम भक्ति से हट गया था। राम देवर गुड्डा (राम देव पहाड़ी) के निकट जंगल में भगवान शिव का मंदिर है। वा.रा. 6/4/9 से आगे पूरे अध्याय मानस 5/34/2 से 5/34/छं 2 तक भैरव मंदिर से बाणेश्वर मंदिरः- बाणावर-दोदन हल्ली-मनकत्तूर , एन.एच.234-12 कि.मी.
Read moreकन्नड शब्द बाण होरा का अर्थ है बाण नहीं उठा सकता। लक्ष्मणजी ने श्रीराम के धनुष बाण ले कर चलने से मना कर दिया था। यहां भगवान शिव ने स्थानीय प्रभाव बता कर दोनों को शांत किया था। जन श्रुतियों के अनुसार बाणेश्वर से रामेश्वरम – लक्ष्मणेश्वरः- मनकत्तूर – बाणावर – अर्सीकेरे – हासन – […]
Read moreश्रीराम ने किष्किंधा के बाद कावेरी नदी के साथ-साथ सेना सहित लम्बी यात्रा की थी। तभी उन्होंने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। इस स्थान को श्रीराम के दो बार सान्निध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वा.रा. 6/4/9 से आगे पूरे अध्याय मानस 5/34/2 से 5/34/छं 2 तक नोटः रामेश्वर तथा लक्ष्मणेश्वर पास ही है लक्ष्मणेश्वर […]
Read moreयह मंदिर कावेरी नदी पार करके है। यात्रा में श्रीराम और लक्ष्मणजी अलग-अलग चल रहे थे। शिव पूजा का समय हुआ तो रामजी ने नदी पार नहीं की थी इसलिए लक्ष्मण जी ने कावेरी नदी के पार यहाँ शिव पूजा की तथा लक्ष्मणेश्वर मंदिर की स्थापना की।
Read moreकृष्ण राज नगर के निकट कावेरी नदी के किनारे चुन्चा-चुन्ची नामक राक्षस दम्पति को श्रीराम ने उचित शिक्षा देकर सात्विक बनाया था तथा उनसे ऋषियों की रक्षा की थी।
Read moreवानर सेना ने मेलुकोटे नामक स्थान पर जलपान किया था। नगर से 3 कि.मी. दूर जंगल में एक पहाड़ी पर श्रीराम के बाण द्वारा बनाया गया जल स्रोत आज भी है। वा.रा. 6/4/9 से आगे पूरे अध्याय मानस 5/34/2 से 5/34/छं 2 तक धनुष कोटि से शिव मंदिरः- मेलुकोटे- मलवली-सत्यगाला, एस.एच 47 – 95 कि.मी.
Read moreलंका पर चढ़ाई करते समय श्रीराम ने गावी दैत्य का वध किया था। फिर उन्होंने शिव पूजा की तथा राजा दशरथजी का श्राद्ध किया था। सत्यगाला से 3 कि.मी. दूर प्र्रेत पर्वत पर भगवान शिव मंदिर पर आज भी स्थानीय लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने आते हैं।
Read moreलोक कथा के अनुसार श्रीराम जब लंका से अयोध्या वापिस जा रहे थे तो स्थानीय नागरिकों ने यहाँ उनका पट्टाभिषेक किया था। किन्तु यह तर्कसंगत नहीं लगता। विद्वानों की राय में श्रीराम लंका अभियान में ही यहाँ से गये थे। यह स्थल जाने के मार्ग पर ही आता है।
Read moreइस का मूल नाम त्रिशिरापल्ली है। यह रावण के भाई त्रिशिरा ने बसाई थी। श्रीराम की सेना इधर से ही रामेश्वरम गयी थी।
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